पहाड़ों में शिक्षा के प्रति लोग बहुत संवेदनशील रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में यह क्षेत्र सदा आगे रहा है। रोजगार हेतु पलायन करना यहां के लोगों की नियति रही है। जिस वजह से लोगों का बाहरी समाज के साथ काफी संपर्क रहा है। घर से बाहर रहकर लोग हमेशा शिक्षा के प्रति ज्यादा गम्भीर हो जाते हैं। ऐसे लोग अपनेे बच्चों पर विशेष ध्यान देकर उन्हें हर सम्भव अच्छी शिक्षा देने का प्रयास करते है। आजादी से पहले भी शिक्षा के प्रसार में लोगों के प्रयास उल्लेखनीय रहे हैं । आजादी के बाद एक ऐसा अदृश्य शिक्षा आंदोलन चला, जिसके माध्यम से लोगों ने पहाड़ों के दूरदराज के ग्रामों में भी स्वयं के प्रयासो से स्कूल खोलकर अपने क्षेत्र के छात्रों को शिक्षा देकर उन्हें राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका सुनिश्चित करने के लिये तैयार किया। इन स्कूलों के भवन लोगों ने अपने संसाधनों और चंदे से बनाये। साथ ही पठन पाठन हेतु शिक्षकों की व्यवस्थायें भी स्वयं की। परन्तु आज व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गयी है। लोगों का भी लगाव पहले जैसा नहीं रहा। जिसका खामियाजा ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। संस्था द्वारा शिक्षा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिये ‘जाग रे पहाड़’ अभियान के माध्यम से दूरदराज के विद्यालयों के छात्रों के बीच समय-2 पर विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को आमंत्रित कर बच्चों को जानकारी देने का कार्य किया जाता रहा है।
इस दिशा में आगे बढ़ते हुए सन् 2009 में संस्था द्वारा पद्मभूषण प्रो.के.एस.वल्दिया से इस क्षेत्र में पहल करने की अपील की गयी। जिसे स्वीकारते हुए उन्होंने पहाड़ में शिक्षा के प्रसार को बढ़ावा देने के लिये कार्य करने का संकल्प लेते हुए कहा कि वे जीवन पर्यन्त गर्मियों और शीतकाल में एक-एक माह का समय उत्तराखण्ड को देंगे। पहाड़ों के दूर-दराज के विद्यालयों में जाकर वैज्ञानिक संगोष्ठियों का आयोजन कर छात्रों में विज्ञान के प्रति अभिरूचि बढ़ायेगें। अपने साथ ऐसी सोच रखने वाले अन्य शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों को भी जोड़ने का भी प्रयास करेगें। वर्ष 2010 से सीमान्त क्षेत्रों के इण्टरमीडिएट विज्ञान वर्ग के छात्रों हेतु दो-तीन दिन के आवासीय कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है। जिनमें देश के प्रतिष्ठित शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थानों के प्राध्यापक एवं वैज्ञानिक प्रतिभाग कर रहे है। साथ ही कक्षा 6 से 9 तक के बच्चों हेतु गणित एवं विज्ञान की एक सप्ताह की विशेष कक्षाओं का आयोजन किया जा रहा है। जिनमें गणित एवं विज्ञान की आधारभूत जानकारियां भी जा रही है।
शिक्षा से जुड़े हमारे कार्य
साइन्स आउटरीच प्रोग्राम
जून 2009 में हिमालयन ग्राम विकास समिति ने अपने प्रेक्षागार में ग्रामीण जीवन की ज्वलन्त सामाजिक और आर्थिक समस्याओं पर चर्चा करने के लिए गंगोलीहाट-बेरीनाग अचंल के सामाजिक कार्यकर्ताओं, वरिष्ठ शिक्षकों एवं सेवानिवृत अनुभवी अधिकारियों की सभा आयोजित की। विस्तृत चर्चा के विश्लेषण से यह प्रतीत हुआ कि यदि अपनी सन्तानों का भविष्य सुधारना है तो हमें न तो सरकारों से आशा करनी चाहिए, और न ही बाह्य सहायता की उम्मीद रखनी चाहिए। क्यों न हम स्वयं अपने बच्चों का भविष्य सुधारने का प्रयत्न करें। सभा में उपस्थित लोगों की आम राय थी कि विद्यार्थियों की समुचित शिक्षा के लिए हमें एकान्त भाव से प्रयास करना चाहिए, भले ही वह छोटी-सी कोशिश हो। हाईस्कूल एवं इन्टर काॅलेजों के विद्यार्थियों को जागरूक करने का प्रयास होना चाहिए।
इस प्रकार प्रारम्भ हुआ हमारा छोटा-सा प्रयास विज्ञान के विषयों में अभिरूचि जाग्रत कर विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए उत्प्रेरित करने के लिए विशेषज्ञों के व्याख्यानों का सिलसिला। जिस कार्यक्रम की रूपरेखा बनी, उसके संचालन का बीड़ा उठाया हिमालयन ग्राम विकास समिति के राजेन्द्र सिंह बिष्ट ने और कार्यक्रम के लिए यथोचित मानवीय-आर्थिक संसाधन जुटाने का भार वहन किया जवाहर लाल नेहरू सैन्टर फाॅर अडवान्स्ड साइटिंफिक रिसर्च, बेंगलूरू के आॅनरैरी प्रोफ़ैसर खड्ग सिंह वल्दिया ने। काॅलेज-काॅलेज जाकर विद्यार्थियों को सम्बोधित-उत्प्रेरित करने का बीड़ा भी उन्होंने उठाया। तुरन्त आरम्भ हो गया यह कार्यक्रम, जो हिमालयन ग्राम विकास समिति के शिक्षा-प्रसार कार्यक्रम का एक नया विस्तार बन गया। चैड़मुन्या, बेरीनाग, पाँखू, बिर्थी, जाबुकाथल एवम् गंगोलीहाट के हाईस्कूलों-काॅलेजों में जाकर न केवल वैज्ञानिक विषयों पर व्याख्यान दिये गये वरन विद्यार्थियों और उनके अध्यापकों को आने वाले समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए तथा सन्नद्ध होने का आह्वान करते हुए उन्हें उत्प्रेरित-उन्मेषित करने का प्रयास आरम्भ हुआ।
इस कार्यक्रम का उत्साहजनक एवं दूरगामी प्रभाव हुआ-अध्यापकों एवम् विद्यार्थियों के आग्रहपूर्ण आमंत्रण मिलने लगे कि और ऐसे कार्यक्रम हों, संस्था के तत्वाधान में उत्तराखंड के पर्वतीय प्रदेशों में विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा देकर होनहार छात्र-छात्राओं को विज्ञान की उच्च-शिक्षा के लिए सक्षम बनाने का प्रयास नियमित रूप से आरम्भ हो गया। व्याख्याता होते हैं।
देश के अनुभवी ख्यातिनामा विज्ञानी, इंजीनियर, डाॅक्टर आदि विश्वविद्यालयों, आई.आई.टी., शोध संस्थानों से जुड़े हुए है ये अनुभवी विशेषज्ञ। उनका विषय होता है कुछ नया हो। किन नयी खोजों-अविष्कारों की हलचल है, और समाज के हित में उनका कैसा और किस ढंग से उपयोग-व्यवहार हो रहा है। परोक्ष में यह भी दर्शाया जाता है इन्टर काॅलेजों के शिक्षकों को अपने पुराने पाठ्यक्रमों को सुधारने-परिवर्तन करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए।
साइन्स आउटरीच प्रोग्राम दो पालियों में आयोजित किया जा रहा है। शरदकाल में काॅलेज-काॅलेज जाकर तीन-चार विद्वान प्रोफेसर अपने-अपने विशिष्ट विषयों पर अपने व्याख्यान देते हैं। एक स्थान पर एक से अधिक तीन-चार काॅलेजों के विद्यार्थी एवम् उनके शिक्षक एकत्र होते हैं। इस पाली में चार-पाँच भिन्न-भिन्न स्थानों में एक-एक दिन का कार्यक्रम होता है।
हिमालयन ग्राम विकास समिति का अपना सुविधाजनक प्रेक्षागार है, आमंत्रित प्राध्यापकों, विद्यार्थियों और उनके शिक्षकों के ठहरने एवं उनके भोजन की अति उत्तम व्यवस्था है। ग्रीष्मकाल में आमतौर पर गंगोलीहाट में हिमालयन ग्राम विकास समिति के परिसर में दो या तीन दिन के प्रोग्राम में सारे उत्तराखण्ड से 15-20 इण्टर काॅलेजों के 80 से 100 विद्यार्थी और उनके 20-25 शिक्षक आ जुटते हैं। तीन-चार दिन विद्वान प्राध्यापक, विद्यार्थी और उनके शिक्षक साथ रहते हैं, साथ खाते-पीते हैं, साथ पढ़ते-सीखते हैं और परस्पर संवाद करते हैं। आमंत्रित विशेषज्ञ प्रोफ़ेसरों/विज्ञानियों की यात्रा, उनके रहने-ठहरने और उनके खाने-पीने की व्यवस्था स्थानीय आयोजक करते हैं। इन सब पर होने वाले व्यय का भार सी.ऐन.आर. राव ऐजुकेशन फाउण्डेशन तथा हिमालयन ग्राम विकास समिति शिक्षानिधि से वहन करती है।
सारे कार्यक्रम दूर-दराज के वंचित विद्यार्थियों के हितों को दृष्टि में रख कर किये जाते हैं। दूर-दराज के ग्रामीण अंचल के सभी विद्यार्थी हर दृष्टि से वंचित हैं-अभावग्रस्त हैं। उन्हें न तो उपकरणों का लाभ है, न यथेष्ट संख्या में विज्ञान शिक्षक हैं। उनके काॅलेजों में व्यवस्थाएँ भी ऐसी नहीं थीं कि उचित शिक्षा मिल सके। गंगोलीहाट एक आदर्श स्थान है। शिक्षकों का चयन कर उन्हें आमंत्रित किया जाता है। विद्यार्थियों का चयन काॅलेजों के प्रधानाध्यापक/प्रधानाध्यापिका करते हैं।
इस कार्यक्रम से अनेकों अनुभवी विशेषज्ञ विज्ञानी और इंजीनियर जुड़ गये हैं। इनमें हैं आई.आई.टी. रूड़की से प्रो. स्वर्गीय उमेश कोठ्यारी, गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि विश्वविद्यालय के प्रो. हरि मोहन अग्रवाल (भौतिक शास्त्र), प्रो. पूरन सिंह महर (सिविल इंजीनियरिंग), प्रो. अनिल कुमार पन्त (रसायन शास्त्र) हल्द्वानी में पाॅल काॅलेज ऑफ बाॅयोटैक्नोलाॅजी के निदेशक प्रो. बाला दत्त लखचैरा (बाॅयोटेक्नोलाॅजी), कुमाऊँ विश्वविद्यालय की प्रो. गंगा बिष्ट (रसायन शास्त्र) और प्रो. राजीव उपाध्याय (भूविज्ञान), आई.आई.टी. मुम्बई के प्रो. कंचन पाण्डे (भूविज्ञान), स्पेस अप्लिकेशन सेन्टर अहमदाबाद के सेवानिवृत्त उपनिदेशक इंजी. शमशेर सिंह वल्दिया, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. कमान सिंह कठायत (रसायन विज्ञान), जवाहरलाल नेहरू सेन्टर फाॅर एडवान्स्ड साइंटिफिक रिसर्च बेंगलुरू के प्रो. सी.ऐन.आर. राव (पदार्थ विज्ञान), प्रो. उमेश वाघमरे (भौतिक विज्ञान), प्रो. उदय कुमार रंगा (जनैटिक्स), प्रो. ऐन. चन्द्रभास (भौतिक रसायन) तथा प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया (हिमालयी भूविज्ञान)।
इन नियमित प्राध्यापकों के अतिरिक्ति समय-समय पर विशेष अतिथि के रूप में गोविन्द बल्लभ पन्त पर्यावरण संस्थान के तत्कालीन निदेशक डाॅ. लोकमान सिंह पालनी, बेंगलूरू में इण्डियन एकेडमी ऑफ साइन्स के अध्यक्ष प्रो. ए.के. सूद, मोहाली में नैनोटेक्नोलाॅजी संस्थान के निदेशक प्रो. ए.के. गांगुली, बेंगलूरू के चैस्ट ऐन्ड हेल्थ सेन्टर के डाॅ. दीपक जोशी (जन स्वास्थ्य), नैनीताल में ‘‘पहाड़’ के सम्पादक प्रो. शेखर पाठक (इतिहास), नयी दिल्ली के विज्ञान लेखक डाॅ. देवेन्द्र मेवाड़ी, कौसानी में लक्ष्मी आश्रम की सर्वोदयी समाजसेवी राधा बहन, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. होशियार धामी, यूसर्क (देहादून) के निदेशक प्रो. दुर्गेश पन्त जैसे पारंगत विद्धानों ने आकर साइन्स आउटरीच प्रोग्राम में अपने-अपने विषयों पर विद्यार्थियोें और उनके शिक्षकों को सम्बोधित किया।
इस कार्यक्रम के साथ महान रसायन विज्ञानी भारत रत्न प्रो. सी. एन. आर. राव सहित Jawahar Lal Nehru Center For Advanced Scientific Reserch (JNCASR) and Indian Institute of Science (IISc), ISRO, DRDO, IIT Mumbai & Roorkee, कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर, गढवाल व कुमाऊं विश्वविद्यालय, हिमालयन पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं तकनीकी परिषद् (UCOST) व उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (USERC) सहित और कई प्रतिश्ठित संस्थानों के 72 वैज्ञानिक व प्रोफेसर जुड़कर वर्श में 6 से 12 दिन की स्वैच्छिक सेवायें दे रहे है। प्रो. सी. एन. आर राव साइंस आउटरीच कार्यक्रम के लिए 2009 से नियमित रूप से वित्तीय सहायता देने के साथ ही निरन्तर मार्गदर्शन भी कर रहे है।
वर्ष 2009 से संचालित इस कार्यक्रम से पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत, चमोली, रूद्रप्रयाग, अल्मोड़ा नैनीताल जिले के 1004 विद्यालयों के 26317 विद्यार्थी व 1793 शिक्षकों सहित कुल 28110 विद्यार्थी व शिक्षक लाभान्वित हो चुके है। साइंस आउटरीच कार्यक्रम के साथ-साथ संस्था द्वारा विज्ञान लोकप्रियकरण कार्यक्रम चलाकर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों में विज्ञान के प्रति अभिरूचि बढाने व जूनियर स्तर के विद्यार्थियों को गणित की मूलभूत सिद्वान्तों की समझ को स्पष्ट करने के उद्देश्य से समय-समय पर 5 से 7 दिनों के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। इन कार्यक्रमों के आयोजन से पिछड़ें क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों की जानकारी होने से कई लाभ हो रहे है।
गणित और विज्ञान विषय पर विशेष शिक्षा कार्यक्रम
विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के लये गणित विषय अतिमहत्वपूर्ण है। ग्रामीण अंचलों में प्राथमिक व जूनियर स्तर पर गणित व विज्ञान विषय की पढ़ाई पर कम ध्यान दिया जा रहा है। जिस कारण छात्रों को गणित व विज्ञान विषय के आधारभूत जानकारियां नही है। जिसके कारण छात्र आगे चलकर गणित व विज्ञान की पढ़ाई से घबराते है। उन्हें ये विषय बोझिल व ऊबाऊ लगने लगते हैं। छात्राओं की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक दयनीय है। उनके लिये हाईस्कूल स्तर पर गणित पढ़ना अनिवार्य नहीं हैं। इसलिये गणित की पढ़ाई में उनका ध्यान और कम हो जाता हैं, समय विज्ञान का है। गणित ही विज्ञान की भाषा हैं। बिना गणित के विज्ञान को समझना कठिन हैं।
गणित और विज्ञान की शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु संस्था द्वारा कार्यक्रम की पहुंच को और अधिक विद्यालयों व छात्रों तक पहुंचाने के उद्देश्य से आवासीय कार्यक्रम के साथ ही उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपदों के दूरदराज क्षेत्रों में जाकर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, इन कार्यक्रमों को चार-पांच विद्यालयों के छात्रों के लिये एक विद्यालय में आयोजित किया जाता है। कार्यक्रम में चार-पांच वैज्ञानिक व प्राध्यापक स्वयं दूर-दराज के क्षेत्रों में जाते है।
छः से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए आसान तरीकों से गणित और विज्ञान की शिक्षा
आसान तरीकों से गणित
धूप घड़ी बनाना सीखते बच्चे
विज्ञान वेद संस्थाओं से समन्वयन कर संस्था ने अनुपयोगी सामग्री व कबाड़ से जुगाड़ की तकनीकों को अपनाकर छात्रों में विज्ञान की समझ बढ़ाने की पहल की है। बच्चों को बहुत सरल और आसान तरीकों के माध्यम से उन्हें स्वयं के प्रयासों से प्रयोग करते हुए सीखने का अवसर प्रदान किया है। इस तरह के कार्यक्रमों से बच्चों की विज्ञान के प्रति अभिरूचि पैदा हुई है। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से छः से आठवीं कक्षा के छात्रों को शामिल किया जाता है।
छात्रवृत्तियाँ
महंगी शिक्षा, ग्रामीणों की साधनहीनता, दुर्दशाग्रस्त काॅलेजों में यथोचित शिक्षण का अभाव और अंग्रेजी लिख-बोल न सकने की विवशता। सरकारें उदासीन हैं, नेताओं ने उन्हें भुला दिया है, अधिकारी परवाह नहीं करते और गरीब जनता नितान्त असहाय है। परिस्थितियाँ ऐसे ही बनी रही तो इक्कीसवीं शताब्दी में भी गरीब होनहार विद्यार्थी अशिक्षा के अन्धकार में डूब रहे हैं।
साधनहीन ग्राम्य समाज में अशिक्षा के अंधकार को मिटाने के उद्देश्य से संस्था ने गरीब होनहार विद्यार्थियों छात्रवृत्ति के रूप में आर्थिक मदद देने की योजना बनाई। योजना को साकार करने के लिए संस्था से जुड़े अपने विषय के विभिन्न विशेषज्ञों ने समय समय पर उत्तराखंड के गरीब होनहार विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के रूप में आर्थिक मदद देने का निश्चय किया। इस छात्रवृत्ति में विद्यार्थियों को प्रतिमाह एक हजार रूपये की मदद दो वर्षों के लिए की जाती है। अभी तक लगभग २० से ज्यादा विद्यार्थी इसका लाभ ले चुके है।
छात्रवृत्ति प्रदान करने वाले विशेषज्ञों में प्रमुख रूप से प्रो. सी.एन.आर. राव, प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया, डाॅ. प्रतिमा जौहरी, प्रो. कंचन पाण्डे, डाॅ. गोविन्द प्रसाद किमोठी, प्रो. इन्दुमति राव, प्रो. उमा भट्ट, इंजी. श्री शमशेर सिंह वल्दिया, प्रो. गंगा बिष्ट, श्री परमजीत सिंह, श्रीमती पंचमी वल्दिया, भवानी दत्त खर्कवाल, प्रो. राजीव उपाध्याय, डाॅ. बी.डी.लखचैरा योगदान दिया।
साक्षरता अभियान
हिमालयन ग्राम विकास समिति का नारा है ‘‘जाग रे पहाड़’’। महिलाओं को साक्षर किये बिना जनता को जाग्रत नहीं किया जा सकता। महिलाओं को साक्षर बनाने का पहला कदम था नुक्कड़ नाटकों द्वारा उन्हें उत्प्रेरित करना और साथ ही शराब के नशे की बुराईयों को उजागर कर पुरूषों को मद्यनिषेध के लिए राजी करना। सन् 1991 में पहली कोशिश गंगोलीहाट ब्लाॅक के बनकोट गाँव में हुई। इस प्रयास में बनकोट गाँव की 246 महिलाऐं साक्षर र्हुइं। इसी दौरान प्रौढ़ निरक्षरों को सुगमता से दो माह की अवधि में ही पढ़ना-लिखना सिखाने के लिए एक प्रौढ़ साक्षरता शिक्षण पद्धति विकसित की गयी यह एक उपलब्धि थी।
दूसरी कोशिश पिथौरागढ़ के पूर्व में लेलू गाँव (विण ब्लाॅक) में हुई जहाँ शराब का अधिक प्रचलन था। 24 मार्च 1992 से लेकर 27 मई 1992 की स्वल्प अवधि में 228 व्यक्ति पढ़ना-लिखना सीख गये। तीसरी कोशिश में 21 नवम्बर 1992 से 24 अप्रैल तक पिथौरागढ़ के दक्षिण-पश्चिम में पट्टी तल्ला वल्दिया के मर्सोली, ड्योडार, महरखोला, बुँगा, सिमलकोट, रिखांई, विकासखण्ड विण व मूनाकोट के पंचेश्वर से लगे ग्रामों बेडा, भटियानी, हिमतड़, जमराड़ी व निसनी तथा विकासखण्ड गंगोलीहाट के गुनाकिटान, उसी दौरान गणाई एक ग्वाडी ग्रामों में भी साक्षरता कार्यक्रम संचालित किया। उन्हीं दिनों जब समग्र साक्षरता अभियान के अन्तर्गत जनपद पिथौरागढ़ का चयन हुआ तो हिमालयन ग्राम विकास समिति को गंगोलीहाट विकासखण्ड में कार्यक्रम चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संस्था ने 24 सितम्बर से 2 अक्टूबर 1993 तक 40 दिवसीय जन-जागरण अभियान चलाया। नवम्बर 1993 से गणाई क्षेत्र के 22 ग्रामों में पठन-पाठन का कार्य किया गया। ज्ञातव्य रहे कि 1992 में संस्था की एक 10 सदस्यीय टीम द्वारा अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट व चैखुटिया विकासखण्डों में भी व्यापक रूप से जन-जागरण कार्यक्रम संचालित किये।
हिमालयन ग्राम विकास समिति के इन प्रयासों का एक प्रतिफल यह था कि सम्बन्धित क्षेत्रों के हाईस्कूलों और इण्टर काॅलेजों के विद्यार्थी भी प्रभावित होकर साक्षरता अभियान से जुड़ गये और अपने-अपने ग्रामवासियों को साक्षर बनाने के लिए समय देने लगे। समवेत प्रयत्नों से गंगोलीहाट अंचल के गाँवों में निरक्षर लोगों की संख्या काफी घटी। विह्ंगम दृष्टि डालने पर पता चलता है कि इस अल्पकालीन अभियान के फलस्वरूप गंगोलीहाट, मूनाकोट और बिण ब्लाॅकों के 1288 लोग साक्षर हो गये। एक दशक के प्रयत्नों का परिणाम यह था कि 45 गाँवों के लोग पूर्णतः साक्षर हो गये।