पर्वतीय क्षेत्र में रोजगार एक गम्भीर और ज्वलंत समस्या है। क्षेत्र की विषम भौगोलिक संरचना और पिछड़ापन रोजगार के अवसरों के प्रतिकूल है। अतः हमारा मानना है कि वस्तुस्थिति में सुधार लाने के लिए नई तकनीकी जानकारी का समुचित इस्तेमाल करते हुए उन क्षेत्रों में स्वरोजगार के अवसर रचित किए जाये, जो यहां की जरूरतों व अपेक्षाओं के अनुकूल हों। इसके अलावा उचित कदम उठाकर जीविकोपार्जन का माहौल बेहतर बनाया जा सकता है। हमारा मानना है कि स्वयं सहायता समूह उपलब्ध सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिये आपसी तालमेल से संगठित होकर काम करें। साथ ही सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा क्षेत्र में जानकारी व जागरूकता का एक ऐसा कार्यक्रम चलाया जाए जिससे लोग परम्परागत रूप से किए जाने वाले कार्यों को आय उपार्जन गतिविधियों के रूप में देख कर उन्हें व्यवसाय के स्तर पर अपना सकें। हमारा मानना है कि जब तक हम लोगों को आजीविका के मुद्दे से नहीं जोड़ते हैं तब तक हम उनसे लम्बे समय तक नहीं जुड़े रह सकते। क्योंकि यह सम्बन्ध प्रोजेक्ट की समाप्ति के साथ-साथ लगभग खत्म हो जाता है। अतः लोगों की जागरूकता व उनके साथ हमारे अर्न्तसम्बन्धों में कमी आती है। दूसरा रोजगार की तलाश में लोग इधर-उधर चले जाते हैं। महिलाएं हमारी मुख्य सम्पर्क व्यक्ति रहती हैं। परन्तु पैसे के अभाव में वे चाहते हुए भी हमारे साथ कार्यक्रमों में नहीं जुड़ पाती हैं।
इस परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए हमने आजीविका संम्वर्द्धन कार्यक्रम को और सघन रूप से चलाते हुए सब्जी उत्पादन के साथ ही पशुपालन और उससे जुड़े डेयरी कार्यक्रम, बकरी पालन के कार्यक्रम पर जोर दिया हैं। वर्मी कम्पोस्ट पिट, पॉलीहाउस, फैरों लाइन टैंकों के निर्माण सहित उन्नत बीज प्रयोग, उन्नत क़़र्षि यन्त्रों आदि के प्रचार-प्रसार की रणनीति अपनाते हुए इस कार्यक्रम को आगे ले गए हैं। इसका परिणाम हमें यह देखने को मिल रहा है कि महिलाएं संगठित होकर दूध उत्पादन, सब्जी उत्पादन एवं बकरी पालन जैसी व्यवसायिक गतिविधियों से जुड़ी है। संस्था द्वारा एक बड़े क्षेत्र में एक वैधानिक संगठन के गठन की पहल करते हुए प्रारम्भ में विकासखण्ड गंगोलीहाट में कामधेनु स्वायत्त सहकारिता का गठन किया। कामधेनु स्वायत्त सहकारिता द्वारा दूध व्यवसाय प्रारम्भ किया गया। इसके परिणामों को देखते हुए संस्था द्वारा दूध व्यवसाय से अन्य क्षेत्र के समूहों को भी जोड़ा। आज की स्थिति में दूध व्यवसाय सुव्यवस्थित तरीके से चल रहा है। जिससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
आजीविका सम्वर्द्धन से जुड़े हमारे कार्य
कामधेनु डेयरी
हिमालयन ग्राम विकास समिति ने दुग्धोत्पादन को आजीविका का साधन बनाने के उद्देश्य से अपनी गौशाला में उन्नत नस्ल की गायें पालकर और कृत्रिम गर्भाधान रीति से उनकी संख्या बढ़ाकर लाभकारी दुग्धोत्पादन का सफल उदाहरण प्रस्तुत किया तो संस्था द्वारा बनाई गई सहकारी समितियों ने भी अपने सदस्यों को उन्नत नस्ल की गाय पालने, उनका कृत्रिम गर्भाधान करवाकर गायों की संख्या बढ़ाने के लिए ऋण देना आरम्भ कर दिया। इसमें सहकारी समितियों की महिला सदस्यों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया तो बहुमूल्य दुधारू गाय-भैंसों का बीमा करवाकर लोगों को आश्वस्त किया कि उनके पैसे डूबेंगे नहीं, और उनके प्रयास विफल नहीं होंगे। हिमालयन ग्राम विकास समिति ने ‘‘उत्तराखण्ड लाइव स्टॉक बोर्ड’’ से तीन स्थानीय नवयुवकों को पैरावेट प्रशिक्षण दिलवाकर योजना को सफल बनाने में भरपूर सहायता की।
सभी के सम्मिलित प्रयासों से 1 दिसम्बर 2009 में गंगोलीहाट में कामधेनु डेयरी की स्थापना हुई।
संस्था के प्रयास और सहकारिता समिति के सदस्यों की मेहनत रंग लाई और आज संस्था द्वारा गठित कामधेनु स्वायत्त सहकारिता के माध्यम से “कामधेनु डेयरी” का संचालन चारों सहकारिता कामधेनु स्वायत्त सहकारिता द्वारा गंगोलीहाट, लक्ष्मीबाई सहकारिता द्वारा बेरीनाग व तल्ला जोहार स्वायत्त सहकारिता द्वारा नाचनी में किया जा रहा है।
‘‘कामधेनु डेयरी’’ का वार्षिक लेन-देन लगभग 30 लाख हो गया है। अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए डेयरी ने दूध की ढुलाई के लिए लीज़ में एक मिनी ट्रक खरीद ली है। आज दूध सुरक्षित रखने के लिए उसके पास अपना ‘डीप फ्रीज़र’ भी है।
चार स्वायत्त सहकारी समितियों के 260 सदस्यों द्वारा प्रतिदिन लगभग 500 लीटर दूध का व्यवसाय किया जा रहा है। इनकी सफलता को देखकर अन्य समितियाँ भी इस व्यवसाय से जुड़ने का प्रयास कर रही हैं। अब तो अनेक महिला स्वयं सहायता समूह अपनी-अपनी सहकारिता समितियाँ बनाने के लिए सक्रिय हो गयी हैं।
कामधेनु स्वायत्त सहकारिता द्वारा बिना किसी बाहरी आर्थिक सहयोग के स्वयं के संसाधनों से ही व्यवसाय को संचालित किया जाता है। संस्था द्वारा आवश्यकता पढ़ने पर इन्हें सिर्फ तकनीकी सहयोग प्रदान किया जाता है। समय-समय पर कामधेनु डेयरी के सदस्यों को दूध का उत्पादन बढ़ाने एवं उन्नत नस्ल के पशुओं को पालने के लिए निरन्तर प्रोत्साहित किया जाता है।
दूध व्यवसाय जहां आय का एक सषक्त साधन बन गया है वही अधिकांश गांवों में अब उन्नत पशु बेचकर भी लोग आय अर्जन कर रहे है। सहकारिता संगठनों द्वारा प्रतिदिन 700 से 800 लीटर दूध की बिक्री की जा रही है। इन डेयरियों के संचालन से 20 लोगों को स्थाई रोजगार उपलब्ध हो रहा है।
इस वर्ष कामधेनु स्वायत्त सहकारिता द्वारा रू. 3455775.00, लक्ष्मीबाई स्वायत्त सहकारिता द्वारा रू.1489087.00 तल्ला जोहार स्वायत्त सहकारिता द्वारा रू. 1292050.00 चेतना स्वायत्त सहकारिता चाख द्वारा रू 921754.00 व नौलिग स्वायत्त सहकारिता देवराड़ी-बोरा द्वारा रू 1048820.00 कुल रू. 8207486.00 के दूध का व्यवसाय किया गया। सभी सहकारिताओं द्वारा अभी तक कुल 6.64 करोड़ रूपये का व्यवसाय किया जा चुका है।
सब्जी उत्पादन
गाँव-गाँव में जलापूर्ति सुनिश्चित कर संस्था के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने ग्रामवासियों को अपने-अपने आँगन के निकट की क्यारियों तथा खेतों में सब्जियाँ उगाने के लिए प्रेरित किया। आरम्भ में संस्था ने अपने 5 नाली क्षेत्र के उद्यान में सब्जियाँ बोई और सब्जियों के उन्नत बीज उत्पादकों को समूल्य दिये। साथ ही सब्जी उत्पादकों को सब्जी बीजों की जानकारी, किस सीजन में कौन-सी सब्जियों को लगाया जाना है, किस प्रकार से बुवाई की जानी है, सब्जियों में होने वाले अधिकांश रोगों की जानकारी व रोगों से सब्जी बचाने के लिए किस किस्म की दवा का प्रयोग किया जाना है, आदि विषयों पन्तनगर विश्वविद्यालय व पर्वतीय कृषि अनुसंधान अल्मोड़ा के विशेषज्ञों के माध्यम से जानकारी व प्रशिक्षण दिया गया।
पाॅलीहाउस में सब्जी उत्तपादन
शुरुआत में संस्था ने अपने उद्यान में पाॅलीहाउस बनाये और सब्जियों का उत्पादन प्रयोग के तौर पर शुरू किया। सफलता मिलने पर ग्रामवासियों के लिए पाॅलीहाउस बनाये ताकि वर्ष में बारहों महीने सब्जी उगाई जा सकें। वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग कर उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की गयी। वर्मी कम्पोस्ट समुचित रीति से सुरक्षित रहे, इसके लिए विशेष पिट (गड्ढ़े) बनाये गये।
सब्जी उत्पादन को बढ़ाने के लिए अब तक 115 पाॅलीहाउस और 131 वर्मी कम्पोस्ट पिट तथा 120 फैरोलाइन टैंक बन चुके हैं।
पिछले तीन वर्षो से सब्जी उत्पादन के कार्य को निरन्तर प्रोत्साहित किया जा रहा है। इन उत्पादकों द्वारा लौकी तोरई कद्दू, खीरा, शिमला मिर्च, बैगन, गोभी आदि सब्जियों के पौध तैयार कर बिक्री की गयी। जिससे एक तरफ उत्पादकों की आय बढ़ी वही अन्य ग्राम के लोग भी प्रेरित होकर सब्जी उत्पादन से जुड़ रहे है।
विभिन्न क्लस्टरों में अब तक 350 से ज्यादा सब्जी उत्पादकों को व्यवसायिक रूप से सब्जी उत्पादन कार्य से जोड़ा गया।
संस्था द्वारा सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विकासखण्ड गंगोलीहाट, बेरीनाग व मुनस्यारी में कम लागत के 169 पाॅलीहाउसों का निर्माण कर 245 कास्तकारों को व्यवसायिक तौर पर सब्जी उत्पादन कार्य से जोड़ा गया है जिसमें से 50 प्रतिशत लाभार्थी सब्जी उत्पादन से प्रतिमाह रू. 2500 से 4000 की आय अर्जित कर रहे है। अन्य लाभार्थी अपने उपयोग हेतु सब्जी उत्पादन कर रहे है जिससे उनकी सब्जी में व्यय होने वाली धनराशि की बचत हुई है।
बकरी पालन
पर्वतीय क्षेत्र में कृषि के साथ-साथ बकरी पालन भी एक परम्परागत व्यवसाय रहा है। सभी ग्रामों में एक-दो बकरी सभी परिवार पालते हैं। लेकिन इनकी संख्या कम होती है, और सही रहन-सहन, उन्नत नस्ल की जानकारी न होने के कारण इस व्यवसाय से मेहनत के अनुरूप लाभ नहीं मिल पाता। संस्था द्वारा प्रयास किया गया कि लोग बकरी पालन को व्यवसाय के रूप में अपना कर इसे अपनी आजीविका से जोड़े। बेरीनाग विकासखण्ड के राईगढ़स्यारी क्षेत्र में ‘हिमोत्थान सोसाइटी’ के सहयोग से संस्था द्वारा प्रयोग के तौर पर वर्ष 2013 से यह काम प्रारम्भ किया। 6 ग्रामों में 50 बकरी पालकों का चयन कर उन्हें बकरी पालन पर प्रशिक्षण दिया गया। स्थानीय पशु चिकित्सकों की सहायता से ‘बकरी स्वास्थ्य शिविरों’ का आयोजन कर बकरी के खाने-पीने एवं उनके टीकाकरण आदि की जानकारी दी गयी। लोगों को कम से कम 8 बकरी एवं एक बकरा पालने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया। इसके लिए बाड़ों का निर्माण कर उन्हें आर्थिक सहायता भी दी गयी है। इस कार्य में स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को भी शामिल किया गया है । बकरियाँ खरीदने के लिए भी 25 प्रतिशत सहायता राशि प्रदान की गयी। पर्वतीय क्षेत्र की उन्नत चैगर्खा प्रजाति की बकरी को संरक्षित कर इसे विकसित करने का भी प्रयास किया जा रहा है। यह व्यवसाय गरीबों के लिए काफी फायदेमन्द सिद्ध हो रहा है।
इस प्रयास के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए गंगोलीहाट विकासखण्ड के टिम्टा व चाख कलस्टरों में भी बकरी पालन कार्यक्रम को प्रारम्भ किया गया है। कलस्टर नाचनी के ग्राम नाचनी, धामीगांव, खेतभराड, बमनगाॅव व बरा में 6 बकरी पालकों द्वारा 56 तथा टिम्टा कलस्टर मे 25 परिवारो के द्वारा 250 व कलस्टर चाख मे 23 परिवारो द्वारा 230 सहित कुल 536 बकरी क्रय कर सभी परिवार व्यवसायिक तौर पर बकरी पालन कर रहे है। बकरियों के बेहत्तर रखरखाव हेतु कलस्टर टिम्टा में 15 व चाख में 10 बकरी बाढ़ों का निर्माण भी कराया। अब इस कार्यक्रम का विस्तार अन्य गावों में किया जा रहा है।
पर्वतीय क्षेत्र में कृषि एवं पशुपालन के साथ ही ’बकरी पालन’ भी एक परम्परागत व्यवसाय रहा है। उचित रहन-सहन एवं उन्नत नस्ल की जानकारी नहीं होने के कारण इस व्यवसाय से मेहनत के अनुरूप लाभ नहीं मिल पाता है। संस्था द्वारा प्रयास किया गया है कि लोग ’बकरी पालन’ को व्यवसाय के रूप में अपनाकर इसे आजीविका से जोड़ें ताकि बकरी पालन से लोगों को अधिक लाभ प्राप्त हो। पिछले वर्षो में संस्था द्वारा विकासखण्ड गंगोलीहाट बेरीनाग व मुनस्यारी के कुल 200 से अधिक परिवारो को बकरी ’पालन’ व्यवसाय से जोड़ा गया है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में पर्याप्त सुधार हुआ हैं।
सामुदायिक सुविधा केन्द्र
स्वायत्त सहकारिता से जुड़े सभी सदस्य कृर्षि एवं पशुपालन कार्यो से जुड़े है। इन्हें अपनी आवश्यकता की सभी वस्तुओं हेतु स्थानीय बाजार पर निर्भर रहना पड़ता था। बाजार की सामग्री जहां महंगी दरों में उपलब्ध हो रही थी वही इसकी गुणवत्ता में भी कमी थी। स्वायत्त सहकारिताओं द्वारा इन मुद्दों पर गहन चर्चा की अपने सदस्यों को उचित मूल्य में गुणवत्तापूर्ण सामग्री उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सामुदायिक सुविधा केन्द्र के माध्यम से व्यवसाय संचालित करने का निर्णय लेते हुए पिछले तीन वर्षो से राईआगर, बनकोट व नाचनी मे सफलतापूर्वक सामुदायिक सुविधा केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है। इस वर्ष नंदा मैंया स्वायत्व सहकारिता बिर्थी व प्रगति स्वायत्व सहकारिता द्वारा गंगोलीहाट मे भी सी.एफ.सी. खोली गयी है। जिसके माध्यम से कृर्षि उपकरण एवं घरेलू उपयोग की सामग्री का व्यवसाय किया जा रहा है। कामधेनु स्वायत्त सहकारिता द्वारा मई, 2013 से टाटा चाय का व्यवसाय किया जा रहा है, जो कि निरन्तर बढ़ रहा है। पशुओं को उच्च गुणवत्ता के आहार की उपलब्धता कराने के उद्देश्य से लक्ष्मीबाई स्वायत्त सहकारिता राईगढ़स्यारी द्वारा पिछले दो वर्षो से गोदरेज एग्रोवेट से समन्यव कर गोदरेज पशु आहार का व्यवसाय भी किया जा रहा है।
इन केन्द्रों पर सिर्फ खेती-बाड़ी के साथ-साथ घर-परिवार के उपयोग में आने वाली वस्तुएँ भी बिकती हैं। उदाहरणार्थ इनमें हैं विविध कृर्षि उपकरण, जैविक खाद, पशु-आहार, जल शोधक (वॉटर प्यूरिफायर), चाय पत्ती एवं अन्य खाद्य पदार्थ। हिमालयन ग्राम विकास समिति उनके उद्योग में मददगार की भूमिका निभा रही है – उनके लिए किराये पर मकान ढूंढना, उसे सुसज्जित करना, ख्यातिनामा कम्पनियों से एजेन्सी दिलवाना, माल की ढुलाई की व्यवस्था, बैंकों से ऋण दिलवाना इत्यादि।