पर्वतीय क्षेत्र में अधिकांश समय पेयजल की गम्भीर समस्या रहती है। जिसके कारण यहां के लोगों का जीवन कष्टदायी है। यह बात बच्चों और महिलाओं से बेहतर तरीके से समझी जा सकती है जिनके सिर पर पानी ढोने का बोझ होता है। इसका असर इनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ ही आजीविका में भी पड़ता है। पेयजल एकत्रित करने में एक परिवार का 4 से 6 घंटे का समय बेकार में गवाना पड़ता है जिस कारण उत्पादक गतिविधियों, परिवार की देखभाल और स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए समय निकालना मुश्किल हो जाता है। पेयजल की प्रबन्धन व्यवस्था सही न होने से समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। निर्माण कार्यों की गुणवत्ता सही न होने और रखरखाव की कमी के कारण समस्या का हल नहीं निकल पा रहा है। लोगों के द्वारा परम्परागत पेयजल स्रोतों के संरक्षण पर ध्यान न दिये जाने से पेयजल आपूर्ति व्यवस्था को एक बड़ा झटका लगा है। पेयजल आपूर्ति के सम्बन्ध में किये जाने वाले किसी भी नियोजन, क्रियान्वयन व रखरखाव में लोगों की सक्रिय सहभागिता न होने की वजह से समस्या के समाधान की बात तो दूर बल्कि समस्या अपने नये-2 रूपों में सामने आ खड़ी होती है। पानी आपूर्ति की जो वर्तमान व्यवस्था है उसमें अभियांत्रिकी मानकों के अनुरूप जनसंख्या एवं मांग के अनुसार योजना का डिजाइन न होने, निर्माण कार्य में लापरवाही, ग्राम के कुछ ही हिस्सों को लाभान्वित करना तथा समान वितरण की व्यवस्था न होने से समस्या और भी विकराल रूप ले लेती है। जटिल समस्या की गम्भीरता का अनुमान निम्न बातों से भी लगाया जा सकता है-
- गांवों में होने वाले अधिकतर विवादों की मुख्य जड़ पानी ही है।
- कई बार पंचायत स्तर की बैठकों में पूरा दिन पेयजल के मुद्दों तक ही सीमित रह जाता है।
- पानी एकत्र करने के लिये लोगों को बर्तन खरीदने में भी प्रतिवर्ष हजारों रूपया खर्च करना पड़ता है, जो गरीब परिवारों के लिए एक बहुत बड़ा बोझ है।
- जाड़ो में दिसम्बर से फरवरी माह के बीच जब पहाड़ों में ठण्ड चरम सीमा पर होती है उस समय पानी ढ़ोना शरीर के लिए अत्यधिक कष्टदायी हो जाता है। पाले से महिलाओं और बच्चों के हाथ-पांव अकड़ जाते हैं, जिस कारण जाड़ों में निमोनिया होना एक आम बात है।
- गन्दे पानी के उपयोग से डायरिया, पीलिया, चर्म व पेट के रोगों से अधिकांश लोग प्रभावित रहते हैं।
पेयजल समस्या के निदान हेतु संस्था प्रारम्भ से ही सवेंदनशील रही है और लोगों के साथ मिलकर इस समस्या के निदान हेतु लगातार प्रयास करती आयी है। क्योंकि संस्था का मानना है कि लोग पानी का महत्व समझें, सबको पानी मिले इस भावना को जीवन्त करें, सबको शुद्ध पानी मिले, सरकार व विभागों पर लोगों की निर्भरता कम हो, स्वास्थ्य में सुधार हो, लोगों का समय बचे, ताकि वे आय उत्पादक गतिविधियों से जुड़ सकें। इसलिए सन् 1996 से जो गतिविधियाँ इस दिशा में संस्था द्वारा चलाई जा रही हैं उनके माध्यम से हम लोगों तक पानी के प्रबन्धन की बात को ले जा रहे हैं, उनके अन्दर अपनी पानी की व्यवस्था के क्रियान्वयन एवं रखरखाव की भावना को पुनर्जीवित कर रहे हैं, साथ ही वर्षा के पानी के उपयोग की परम्परागत पद्धतियों का विस्तार नयी तकनीकी व समझ के सहारे से भी कर रहे हैं। संस्था का पेयजल योजनाओं के रखरखाव के प्रति लाभार्थी समुदाय को पूर्णरूप से उत्तरदायी बनाया जा रहा है। ताकि लोग स्वयं ही अपनी समस्या का निराकरण कर सके। इस दिशा में संस्था लोगों के साथ कार्यक्रम पूर्ण होने के बाद भी लगातार सहयोग व मार्गदर्शन कर उन्हें अपनी योजनाओं की देखरेख हेतु प्रोत्साहित करती आ रही है। ताकि इन योजनाओं का लाभ लम्बे समय तक मिल सके।
ग्रामीण जल आपूर्ति एवं वर्षा जल संचयन से जुड़े हमारे कार्य
- वर्षा जल से जलापूर्ति का अभिनव प्रयोग
- सुरंग बना कर पानी की समस्या का समाधान
- विभिन्न निर्मित योजनाओं का रखरखाव
- रेन वाटर हार्वेस्टिंग टैंक
वर्षा जल से जलापूर्ति का अभिनव प्रयोग
पहाड़ी क्षेत्रों में पेयजल आज भी एक गम्भीर समस्या है। जनसंख्या घनत्व कम होने व अत्यधिक ऊँचाई वाले ग्रामों में प्राकृतिक स्रोतों के अभाव में निर्माण लागत ज्यादा आती है। जिसकी वजह से लोगों की तीव्र माँग के बावजूद भी संस्था गाँव की पेयजल समस्या के लिये कोई समाधान ढूँढ़ने में स्वयं को असहाय पा रही थी। लोग बार-बार सस्था से यही बात कहते थे कि उनके गाँव के लिए क्या कोई योजना नहीं हो सकती है? इन्हीं बातों ने संस्था को इन गांवों की पेयजल समस्या के निदान के लिए नये सिरे से सोचने को मजबूर किया। परिणामस्वरूप 7000 फीट की ऊँचाई पर बसे ग्राम नाग में वर्षाती पानी से जलापूर्ति करने का निर्णय लिया गया। इन 20 परिवारों की आवश्यकता का आंकलन करते हुए अधिकतम 100 दिन का ड्राई सीजन मानते हुए प्रतिदिन/परिवार 200 ली. पानी की आवश्यकता के अनुसर 4 लाख लीटर क्षमता के टैंक का डिजाइन तैयार किया गया। इस पानी को पीने योग्य बनाने के लिये छत का पानी रफनिंग फिल्टर से मुख्य टैंक में स्टोर किया गया है। मुख्य टैंक के नीचे 4000 लीटर का एक और सप्लाई टैंक बनाया गया है जिससे प्रतिदिन की आवश्यकता के अनुसार पानी का शुद्धिकरण किया जाता है। फिर इस पानी को 1200 मीटर बिछाई गयी पाइप लाइन व 10 स्टैण्ड पोस्टों के माध्यम से घरों तक पहुँचाया गया है।
इस योजना के बनने से 20 परिवारों को प्रतिदिन 200 लीटर पानी उपलब्ध हो रहा है। जिसके चलते प्रतिदिन महिलाओं का 4 घंटे से अधिक का समय व इसमें लगने वाला श्रम बचा है।
गाँव में पर्यावरणीय स्वच्छता का स्तर बढ गया है। पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी श्री डी. सैन्थिल पांडियन ने इस योजना का निरीक्षण करते हुए इस कार्य को संकटग्रस्त ग्रामों के लिए सबसे सुगम और उपयोगी उपाय बताया। उन्होंने अधिकारियों को शासकीय योजनाओं के अन्तर्गत भी इस तरह की योजनायें बनाने के निर्देश दिये।
नाग गाँव के लोगों का कथन है कि यह कार्य उनके लिए स्वप्न के पूरा होने जैसा है क्योंकि उनका यह मानना था कि ग्राम नाग में जल समस्या का निदान असंभव हैं। परन्तु कार्य से पूर्व ग्रामवासियों का कहना था कि 7000 फीट की ऊँचाई पर बने वर्षाती पानी के इस टैंक से सालभर लोगों की जरूरतों के लिये पानी उपलब्ध हो सकेगा?
ग्राम-नाग व भामा में वर्षाजल से जलापूर्ति के अभिनव प्रयोग
संस्था द्वारा विकासखण्ड-गंगोलीहाट के ग्राम-नाग में 20 अनुसूचित जाति के परिवारों के लिये एक अभिनव प्रयोग करते हुए चार लाख लीटर क्षमता का वर्षाजल टैंक बनाकर 6500 फीट की ऊंचाई पर बसे 20 परिवारों की पानी की समस्या का कुछ हद तक पूरा करने में सफलता प्राप्त की। इस टैंक से अक्टूवर 2007 में जलापूर्ति प्रारम्भ कर दी गयी है। इस टैक से पानी वितरण करने हेतु अलग से चार हजार लीटर का वितरण टैंक बनाया गया है। इस टैंक को रोज भरकर पानी का वितरण 1200 मीटर पाइप लाइन विछाकर किया गया है। इसी तरह से गंगोलीहाट के ही 7000 फीट ऊँचाई में बसे भामा गांव में पेयजल के आपूर्ति हेतु केवल दो नौले थे जिनमें अक्टूबर के बाद पानी काफी कम हो जाता था लोग वर्ष में छः माह डेढ़ से दो किमी दूर से पानी ढोने को मजबूर थे। वर्षात में नौलों में पानी अधिक होने पर वह बह जाता था। संस्था द्वारा मनरेगा योजना के माध्यम से इन नौलों के पास एक-एक लाख लीटर क्षमता के दो स्टोरेज टैंक बनाकर उनमें नौले का पानी डालकर उसे स्टोरेज की व्यवस्था की गयी।
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सुरंग बना कर पानी की समस्या का समाधान
गंगोलीहाट विकासखंड के नैनोलीकैंणा ग्राम में पेयजल की अत्यधिक समस्या इस ग्राम में पेयजल स्रोत भी उपलब्ध नहीं था। ग्राम में बुजुर्गों से वार्ता करने पर पता चला कि ग्राम से 6 किमी. दूर एक गुफा में पानी बहने की आवाज आती है। संस्था द्वारा इस बात का पता लगाने हेतु अपने तकनीकी स्टाफ को भेजा गया। जो कि सत्य था इसके बाद इसकी जानकारी हेतु गुफा में खुदाई की गयी। खुदाई के बाद पता चला कि यहां पानी उपलध है लेकिन गुफा से बाहर जो कि कहीं नीचे गधेरे में निकल जाता है। पानी को बाहर लाना सम्भव नहीं था वर्षात में यह पानी नीचे एक स्रोत में निकला था लेकिन फिर बन्द हो जाता था। काफी विचार-विमर्श के बाद यहां सुरंग बनाकर पानी को बाहर निकालने की योजना बनायी गयी। संस्था द्वारा पहाड़ी को काटने का निर्णय लिया गया।
3 मीटर गहरी व 28 मीटर लम्बी सुरंग बनाकर गुफा के स्रोत में पहुंचे। जहां पर SCC का निर्माण कर पानी की योजना निर्मित की गयी। लगभग 16 वर्ष से यह योजना नैनोलीकैंणा ग्राम के 500 लोगों को जलापूर्ति कर रही है।
वर्ष 2002 से 2014 के बीच सर रतन टाटा ट्रस्ट के वित्तीय सहयोग से Watsan Project के अन्तर्गत 30 ग्रामों की पेयजल समस्या के निराकरण हेतु 44 गुरूत्वीय पेयजल योजनाओं का निर्माण किया गया। सभी ग्रामों में संचालन एवं रखरखाव के कार्य ग्राम प्रबंधन समितियों द्वारा लाभार्थी समुदाय के सहयोग से किया जा रहा हैं। 4 से 14 वर्षों पूर्व निर्मित सभी योजनाओं में नियतिम रूप से जलापूर्ति हो रही है। समुदाय के साथ निरन्तर संवाद एवं चर्चा कर पेयजल योजनाओ के मरम्मत एवं रखरखाव हेतु कार्य किया जा रहा है।
ग्राम चैकी, देवराड़ीबोरा, चचड़ेत, भुवनेश्वर, हमकार्की, बरा, खेतभराड़, बमनगांव, कोट्यूड़ा, हुपली, धामीगांव, नाचनी, अड़खेत, खेता, किमखेत, चचना, डोर, नाकड़ी, भुर्तिगं, भण्डारीगांव (कुल-20 ग्रामों) में नियमित जलकर की वसूली हो रही है। ग्राम बुसैल, सिमलकोट, सौनकीहाट, रणकोट, ल्वेसर, बलीगांव व किमटा में नियमित रूप से जलकर वसूली नहीं होती है।
स्वजल परियोजना के अन्तर्गत निर्मित योजनाओं का रखरखाव
संस्था द्वारा स्वजल परियोजना के तहत 40 ग्रामों में पेयजल एवं स्वच्छता कार्यक्रम के संचालन में ग्राम समितियों को तकनीकी सहयोग प्रदान करते हुए पेयजल एवं स्वच्छता सम्बन्धी संरचनाओं का निर्माण करवाया गया था। वर्तमान में संस्था द्वारा कलस्टर एप्रोच के तहत कार्य किया जा रहा है। इन कलस्टरों में बेड़ूमहर, तल्ला भैंसकोट, कुनतोला, खनकटिया, ढिंगालगांव गांव भी सम्मिलित है। संस्था द्वारा इन गावों में समुदाय के साथ निरन्तर बैठकें आयोजित की जाती है। ग्राम प्रबंन्धन समितियों द्वारा पेयजल योजना का रखरखाव स्वयं किया जा रहा है।
स्वजल परियोजना से आच्छादित ग्रामों में 16 से 19 वर्ष पूर्व बनायी गयी। 40 ग्रामों में निर्मित 51 पेयजल योजनाओं में से 44 पेयजल योजनाओं में सुचारू रूप से जलापूर्ति हो रही है। गांव के लोग स्वयं पेयजल योजनाओं की देखभाल कर रहे है। ग्राम बेड़ूमहर, डुंगरी, जालड़ी, अंगडियागाड़ा, खनकटिया, सेरागड़ा, जजौली, कुनतोला, गराली, ढिंगालगांव, काकड़ा, नैनी व नैलपड़ गावों में समितियों द्वारा अभी जलकर वसूली कर पेयजल योजनाओं की बराबर देखभाल की जा रही है। बाड़ी-रसेदी, चैली, सुरखाल, कमद, चैली, नैनवालगांव, ब्याती व सुकल्याड़ी की पेयजल योजनायें नियमित और पर्याप्त जलापूर्ति नहीं कर पा रही है।
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रेन वाटर हार्वेस्टिंग टैंक
रेन वाटर हार्वेस्टिंग को और अधिक प्रचारित करने के एवं लोगों में वर्षा जल को संरक्षित करने के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के उद्देश्य से संस्था पिछले 18 वर्षो से प्रयास कर रही है। संस्था द्वारा लोगों में वर्षा जल को पेयजल के रूप में उपयोग करने हेतु स्कूलों, मन्दिरों व सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन के लिये वर्षाजल टैंकों का निर्माण किया गया है। संस्था द्वारा विकासखण्ड मुनस्यारी के ग्राम कोट्यूड़ा व हुपली में 24 एवं विकासखण्ड बेरीनाग के ग्राम राईगढ़स्यारी में 42, चैकोड़ी में 10 व भुवनेश्वर में 6 तथा विकासखण्ड गंगोलीहाट के ग्राम भामा में 7, ग्राम जीवल में 3 सहित अन्य स्थानों पर 33 कुल 115 रेन वाटर हार्वेस्टिंग टैंकों का निर्माण किया। जिनकी धारण क्षमता सात से दस हजार लीटर है। इन टैंकों के निर्माण होने से लोगों की कुछ हद तक पेयजल समस्या का निदान हुआ है। इन टैंकों के उपयोग एवं लाभ को देखकर लोग वर्षा जल के संरक्षण के महत्व को समझ रहे है। जिस कारण इन संरचनाओं के निर्माण की मांग बढ़ी है। इस वर्ष कैलाश पवित्र भू-क्षेत्र परियोजना के माध्यम से विकासखण्ड गंगोलीहाट के ग्राम पंचायत उप्राड़ा के लोहारकटिया व छीना तथा विकासखण्ड विण के ग्राम पंचायत दिगतोली में सात हजार लीटर धारण क्षमता के चार वर्षा जल टैंकों का निर्माण किया।
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